कोख से संसार तक बचे बेटी, ससम्मान जियें बेटी,
दुनिया में अहम भूमिका निभाने आई,
सभी को एक जुट कर, प्यार की परिभाषा बन कर आई |
कोई कहे दुर्भाग्य, तो कोई कहे सौभाग्य...

सोचने समझने का नज़रिया है, 
पता नहीं कौन सही और कौन अटखेड़ा है ||

फ़क्र होता है मुझे कि मैं एक बेटी हूँ...
दुनियादारी की समझ भले ही कम रखती हूँ, 
पर माँ पापा को भाई से ज्यादा समझती हूँ |
जीवन खुल के जीने की कला सभी में नहीं होती,

कुछ लोग तो सिर्फ अपना अस्तित्व जताने,
और दुसरों की कोख उजाड़ने के लिए होते है |

माँ दुर्गा को पूजते हो, तो माँ लक्ष्मी को भी...
माँ सरस्वतीं को पूजते हो, फिर अपनी बेटी क्यों नही?
कम से कम खर्च उस पर, यह सोच कि दुसरे घर जाएगी...
याद रखना, आखिर में वही तुम्हारें काम आएगी ||

सोचते हो हर बार तुम ही सही?
दकियानूसी सोच के चलते, दुनिया में तुमसे मूर्ख और कोई नहीं |
सामने वाले पर ऊँगली उठाने से पहले,
ज़रा अपने गिरेवान मे झाँककर देखो...
जिस बेटी ने पापा बुलाया, उसे ही बीच सड़क अकेला छोड़ आया?

जब भी सोचो, अभिशाप है बेटी,
ज़रा एक बार अपनी माँ को देख लेना |
नीरजा भी एक बेटी थी,कल्पना भी एक बेटी थी...
इंदिरा भी किसी की बेटी थी, मदर टेरेसा भी उनमें से एक ही थीं ||

कोख से संसार तक बचें बेटी, ससम्मान जियें बेटी |

Picture Credit: Tanya Verma

13 Comments

  1. bahut hi sundar kavita……bahut badhiya sandesh………beti hai to duniya hai…….aangan me raunak hai…….ghar ka shringaar …..kya nahi hai betiyan…..badlega samaj ….badalna hoga…….bahut khub.

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