कौन कहता है इंसानियत मर चुकी है?
वो अभी भी जिंदा है।
उनमें, जो खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचते हैं।
उनमें, जो इस शैतानी जहां में भी मासूम होते हैं।
उनमें, जिनकी ,दूसरों को रोते है, खुद की आँखें पसीज जाती हैं….
सभी को एक समान.. अपने को भुला आसमां..।।
इंसानियत जिंदा है..
हाँ, थोड़ी सहम गयी है, थोड़ी ठहर गयी है…,पर इंसानियत, जिंदा है..।
गुस्सा आता है देख, उन लोगों को, जो बाकियों की आड़ में रोना करते है…
दूसरी तरफ वो, जो बुराई देख भी आवाज़ नहीं उठाते है।।
अपने लोगों के लिए कुछ करना तो चाहते है…
पर संसार की बुराई का स्तर देख, थोड़ा रुक जातें है।।
याद रखना, इंसानियत मरी नही, अभी भी जिंदा है,
लोगों के दिल में बुराई ही सही, कहीं ना कहीं अच्छाई का एक टुकड़ा, जिंदा है।।
और एक दिन कुछ तो बदलेगा… कुछ तो आगे बढेगा।
और, रावण फिर से हारेगा।।
सीता को हरने वाला नही, हमारे अन्दर छिपा, बसा रावण।।
इंसान को जानवर बनाने वाला, दुनिया को बुराई की ओर धकेलने वाला रावण,
जिंदा इंसान को लाश बनाने वाला रावण… हारेगा।।
हारेगा, एक दिन ज़रूर, और तब….
छोटी सी रोशनी दिखेगी.., तब बाहर ख़ुशी से नाचती, एक चमक के साथ सर उठाती, प्यारी सी आवाज़ आएगी….
मैं जिंदा हूँ, हाँ मैं जिंदा हूँ.., मरी नहीं, मैं जिंदा हूँ..।
इंसानियत जिंदा है..।

10 Comments

  1. Hey dear it’s nice . Nice lines nd thoughts. But tum puri lines mt likhna usse vo poem form mh nhi lgti . Don’t mind plz. We all are here to learn . Puri lines k jgh short mh aise likho k vo kavita h lge .

  2. Hey dear it’s nice . Nice lines nd thoughts. But tum puri lines mt likhna usse vo poem form mh nhi lgti . Don’t mind plz. We all are here to learn . Puri lines k jgh short mh aise likho k vo kavita h lge .

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