चिरैया, गौरैया, ना जाने तुम्हारे कितने नाम...
फिर क्यों हैं लोग तुमसे और तुम्हारे घटते क्रम से अंजान?
क्या हो गयी तुम इतनी बेसुध और अंजान, कि कोई न जाने तुम्हे, पशु और इंसान?
क्या इंसानों में इतनी आत्मीयता भी नही बची, कि एक नज़र देख ले प्रकृति की ओर, बची है भी या नहीं?
पर आज की 'हाईटेक' दुनिया में, जहाँ लोग है एक दुसरे से ही अंजान,
क्या समय होगा इतना, की देख ले प्रकृति को एक नज़र, अपने को सुधार?
मत जाओ गौरैया, होकर इतनी दुखी और उदास, निकलेगा कोई तो हल, 
जिससे आएगी तुम्हारी आखों में चमक और स्थिति में सुधार...
थोडा़ सा और कर लो तुम इंतज़ार, थोडा सा और कर लो तुम इंतज़ार!
ज़रूर मिलेगी कोई तो आशा की किरण या दरवाज़े की चाबी, जिससे खुल जायेगा इंसानों की आख़ों का ताला...
जानती हूँ की समय लगेगा थोडा़, पर समय के साथ ही तो बदलती है ये दुनिया!
शायद, नही जानते ये लोग, 
की जिस छोटी सी गौरैया को हर दिन अपने आंगन में चहचहाता देखा, उसके साथ खेला, 
आज वही बेचारी जा रही है छोड़ के अपना बसेरा...
दिल है की पत्थर, थोडा़ ख्याल तुम भी कर लो, आँगन में पानी भर एक सकोरा ही रख दो,
बस, आँगन में पानी भर एक सकोरा ही रख दो...

2 Comments

  1. गौरियों की घटती संख्या और जलवायु परिवर्तन , पर आपके विचार आशा की किरण

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